वांछित मन्त्र चुनें

न॒हि दे॒वो न मर्त्यो॑ म॒हस्तव॒ क्रतुं॑ प॒रः। म॒रुद्भि॑रग्न॒ आ ग॑हि॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

nahi devo na martyo mahas tava kratum paraḥ | marudbhir agna ā gahi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

न॒हि। दे॒वः। न। मर्त्यः॑। म॒हः। तव॑। क्रतु॑म्। प॒रः। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:19» मन्त्र:2 | अष्टक:1» अध्याय:1» वर्ग:36» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:5» मन्त्र:2


बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अगले मन्त्र में अग्नि शब्द से ईश्वर और भौतिक अग्नि के गुणों का उपदेश किया है-

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विज्ञानस्वरूप परमेश्वर ! आप कृपा करके (मरुद्भिः) प्राणों के साथ (आगहि) प्राप्त हूजिये अर्थात् विदित हूजिये। आप कैसे हैं कि जिनकी (परः) अत्युत्तम (महः) महिमा है, (तव) आपके (क्रतुम्) कर्मों की पूर्णता से अन्त जानने को (नहि) न कोई (देवः) विद्वान् (न) और न कोई (मर्त्यः) अज्ञानी मनुष्य योग्य है, तथा जो (अग्ने) जिस भौतिक अग्नि का (परः) अति श्रेष्ठ (महः) महिमा है, वह (क्रतुम्) कर्म और बुद्धि को प्राप्त करता है, (तव) उसके सब गुणों को (न देवः) न कोई विद्वान् और (न मर्त्यः) न कोई अज्ञानी मनुष्य जान सकता है, वह अग्नि (मरुद्भिः) प्राणों के साथ (आगहि) सब प्रकार से प्राप्त होता है॥२॥
भावार्थभाषाः - सर्वोत्तम परमेश्वर की महिमा का कर्म अपार है, इससे उसका पार कोई नहीं पा सकता। किन्तु जिसकी जितनी बुद्धि वा विद्या है, उसके अनुसार समाधियोगयुक्त प्राणायाम के द्वारा अन्तर्यामिरूप से स्थित परमेश्वर को तथा वेद और संसार में परमेश्वर ने अपनी रचना से अपने स्वरूप वा गुण तथा भौतिक अग्नि के स्वरूप वा गुण जितने प्रकाशित किये हैं, उतने ही जान सकता है, अधिक नहीं॥२॥
बार पढ़ा गया

स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथाग्निशब्देनेश्वरभौतिकगुणा उपदिश्यन्ते।

अन्वय:

हे अग्ने ! त्वं कृपया मरुद्भिः सहागहि विज्ञातो भव। यस्य तव परो महो महिमास्ति तं क्रतुं तव कर्म सम्पूर्णमियत्तया नहि कश्चिद्देवो न च मनुष्यो वेत्तुमर्हतीत्येकः।यस्य भौतिकाग्नेः परो महो महिमा क्रतुं कर्म प्रज्ञां वा प्रापयति यं न देवो न मर्त्यो गुणेयत्तया परिच्छेत्तुमर्हति सोऽग्निर्मरुद्भिः सहागहि समन्तात्प्राप्नोतीति द्वितीयः॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (नहि) प्रतिषेधार्थे (देवः) विद्वान् (न) निषेधार्थे (मर्त्यः) अविद्वान् मनुष्यः (महः) महिमा (तव) परमात्मनस्तस्याग्नेर्वा (क्रतुम्) कर्म (परः) प्रकृष्टगुणः (मरुद्भिः) गणैः सह (अग्ने) विज्ञानस्वरूपेश्वर ! भौतिकस्य वा (आ) समन्तात् (गहि) गच्छ गच्छति वा। अत्र बहुलं छन्दसि इति शपो लुक्। अनुदात्तोपदेश० इत्यनुनासिकलोपः॥२॥
भावार्थभाषाः - नैव परमेश्वरस्य सर्वोत्तमस्य महिम्नः कर्मणश्चानन्तत्वात् कश्चिदेतस्यान्तं गन्तुं शक्नोति, किन्तु यावत्यौ यस्य बुद्धिविद्ये स्तः, तावन्तं समाधियोगयुक्तेन प्राणायामेनान्तर्य्यामिरूपेण स्थितं वेदेषु सृष्ट्यां भौतिकं च मरुतः स्वस्वरूपगुणा यावन्तः प्रकाशितास्तावन्त एव ते वेदितुमर्हन्ति नाधिकं चेति॥२॥
बार पढ़ा गया

माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - परमेश्वर सर्वोत्तम असल्यामुळे त्याचा उत्तम महिमा व कर्म अपार आहे. त्यामुळे त्याचा पारावार नाही; परंतु ज्याची जशी बुद्धी किंवा विद्या आहे, त्यानुसार समाधियोगयुक्त प्राणायामाने अंतर्यामीरूपाने स्थित, वेदात व संसारात परमेश्वराचे आपली रचना, स्वरूप व गुण अथवा जितके अग्नी इत्यादी पदार्थ प्रकाशित केलेले आहेत, तेवढेच जाणू शकतो, अधिक नाही. ॥ २ ॥